Sunday 6 May 2018

कर्महीनता परिवार , समाज और राष्ट्र के पतन का कारण है

    जब  कभी  समाज  पर  दुर्बुद्धि  का  प्रकोप  होता  है   तब  लोग  कर्महीनता   को  ही  कर्मयोग  समझने  लगते  हैं    और  अपने  को  कर्मयोगी  कहने  में  संकोच  नहीं  करते  l  जैसे  एक  भ्रष्टाचारी  है  ,  वह  झूठ  बोलकर ,  दूसरों  का  हक   छीनकर,  हेराफेरी  कर  के  ,  जिस  व्यवसाय  से  उन्हें  समाज  में  सम्मान  है  ,  उसी  व्यवसाय   में  घपला  कर  के   धन  कमाना -- जिस  थाली  में  खा  रहे  हैं  उसी  में  छेद  करना  --- कर्मयोग  नहीं  है   l 
  कर्मयोग  में  उद्देश्य  की  पवित्रता  होनी  चाहिए   l   जब  देश  गुलाम  था  तब   अनेक  महान  नेता   अपने  ओजस्वी  भाषण  से    जनता  के  ह्रदय  में  आग  पैदा  कर  देते  थे  कि  वे  आजादी   के    लिए  मर मिटने  को  तैयार  हो  जाते  थे    l  उनका  पवित्र  उद्देश्य  था ,  संकल्प  था  कि  देश  को  पराधीनता  से   मुक्त  कराना  है ,  स्वतंत्र  होना  है  --- तो  यह  कर्मयोग  था  l 
  लेकिन   यदि    लोग  पैसा  लेकर  ताली  बजाते  हैं ,  निठल्ले  बैठे   कुछ  पैसा  या  सुविधा  लेकर  भाषण  सुनते   हैं ,   अपने  ' आकाओं '  के  कहने  पर   नारेबाजी  और  दंगे - फसाद  करते  हैं  तो  यह  कर्मयोग  नहीं  है   l        समाज  में  ऐसे  लोगों  की  अधिकता  होने  से  ही   जघन्य  अपराध ,  लूटपाट   और  असुरक्षा  बढ़ती  है  l    जरुरी  है  लोग  सकारात्मक  कार्यों  में  व्यस्त  रहे    l  

Saturday 5 May 2018

लक्ष्यविहीन युवा

   जीवन  में  सकारात्मक  कार्यों  में   व्यस्तता    जरुरी  है  l   यदि  ऐसा नहीं  है   तो   खाली  मन  पर  कोई  भी  कब्ज़ा  कर  लेगा  l   आज  युवाओं  की  यही  स्थिति  है   l   गाइड ( तैयार प्रश्न - उत्तर )  रट  कर  पास  हो  जाते  हैं ,  विषय  का  गहराई  से  ज्ञान  न  होने  के  कारण  रोजगार  की  भी  कोई संभावना  नहीं  है  ,  विभिन्न  योजनाओं  के  अंतर्गत  बिना  मेहनत  के    जिन्दगी  के  कार्यकलाप  पूरे  हो  जाते  हैं   ,  तो  ऐसे  युवाओं  को    धन और  पद  से  शक्तिशाली  लोग  अपनी  कठपुतली  बना  लेते  हैं    और  ऐसे   कार्यों  में  उनका  इस्तेमाल  करते  हैं    जिनका  व्यवहारिक  जीवन  की  समस्याओं  से  कोई  लेना - देना  ही  नहीं  है  l  उनके  नकारात्मक  कार्यों  की  वजह  से  ही  अशान्ति  उत्पन्न  होती  है  l
  अब  जरुरी  है  कि  या  तो  युवा  जागरूक  हों    या  उनका  इस्तेमाल  करने  वालों  का  विवेक  जाग  जाये  क्योंकि  यह  सत्य  है  कि  जो  दूसरों  के  जीवन  को  गलत  दिशा  देता  है   उसे  अपने  जीवन  में  भी  कभी  न कभी ,  कहीं  न  कहीं   हारना  पड़ता  है   और  यह  हार  उसे  सारा  जीवन  कचोटती  है   l