भौतिक द्रष्टिकोण से मनुष्य चाहे कितनी भी तरक्की कर ले , वह तब तक अधूरी है जब तक मन के विकारों पर ---- ईर्ष्या - द्वेष , कामना , वासना पर उसका नियंत्रण नहीं है l जब ये दुष्प्रवृत्तियां उस पर हावी हो जाती हैं तो उसकी हालत पशु , राक्षस या अर्द्ध विक्षिप्त जैसी हो जाती है l ये बुराइयाँ आदि काल से हैं और इन्ही के कारण बड़े - बड़े युद्ध हुए l
लोगों को बदलना , समझाना बड़ा मुश्किल है , उचित यही है कि हम स्वयं के बदलें l सर्वप्रथम आत्मविश्वासी बने , किसी के द्वारा की जा रही अपनी निंदा , प्रशंसा , मान - अपमान के प्रति तटस्थ रहे l जो ऐसा कर रहा है , वह उसकी प्रवृति है , वह अपनी आदत से लाचार है लेकिन यदि हम आत्मविश्वासी हैं तो उसका हर दांव निष्फल हो जायेगा l
लोगों को बदलना , समझाना बड़ा मुश्किल है , उचित यही है कि हम स्वयं के बदलें l सर्वप्रथम आत्मविश्वासी बने , किसी के द्वारा की जा रही अपनी निंदा , प्रशंसा , मान - अपमान के प्रति तटस्थ रहे l जो ऐसा कर रहा है , वह उसकी प्रवृति है , वह अपनी आदत से लाचार है लेकिन यदि हम आत्मविश्वासी हैं तो उसका हर दांव निष्फल हो जायेगा l