धन - सम्पति जरुरी भी है लेकिन इसकी अधिकता से व्यक्ति चाहे कोई भी हो उसमे बुरी आदतों का समावेश होने लगता है l बहुत कम ऐसे लोग होते हैं जो धन का सदुपयोग करें , बुराइयों से बचे रहें l आजकल के बाबा - बैरागियों के पास अपार सम्पदा है , यह सम्पदा देश - दुनिया में कहाँ तक फैली है , इसका आकलन करना कठिन है l एक सामान्य व्यक्ति के पास तो देने के लिए अपनी आस्था और श्रद्धा है , वह अपनी मेहनत की कमाई में से बहुत कम चढ़ावा चढ़ा पाता है , फिर इन बाबाओं के पास करोड़ों की सम्पदा , इतना वैभव कहाँ से आता है l जो लोग गलत रास्ते से अपार धन कमाते है , वे ऐसे बाबाओं के माध्यम से अपना धन ठिकाने लगाते हैं l इससे उन्हें दोहरा लाभ हो जाता है --- एक तो मन का अपराध - बोध कुछ कम हो जाता है और दूसरा वे इनके माध्यम से अपने बड़े - बड़े , हर तरह के स्वार्थ सिद्ध कर लेते हैं l अब जरुरत है जागरूकता की , अपनी क्षमताओं पर और उस अज्ञात शक्ति पर विश्वास रखने की l
Wednesday 30 August 2017
Sunday 27 August 2017
मानसिक गुलामी
राजनैतिक रूप से पराधीनता से मुक्त होना ही पर्याप्त नहीं होता l वर्षों गुलामी भोगते - भोगते यदि हमारी गुलाम रहने की आदत बन चुकी है तो हम किसी न किसी कि गुलामी करते ही रहेंगे l जिस भी व्यक्ति के पास थोड़ी भी ताकत होती है , वह अपने शक्ति - प्रदर्शन के लिए लोगों को अपना गुलाम बना लेता है l युवा - वर्ग में सबसे ज्यादा ऊर्जा होती है , जीवन का इतना अनुभव नहीं होता , अत: यह वर्ग बड़ी जल्दी लोगों के बहकावे में आ जाता है l अपने ' आका ' के कहने पर ये लोग सड़कों पर नारे बाजी कर लें , दंगे - फसाद कर लें , तोड़ -फोड़ आदि हिंसक कारनामे कर लें इन लोगों के पास सोचने - समझने की शक्ति नहीं होती l विवेक न होने के कारण उनके इशारों पर कठपुतली की तरह नाचते हैं l यह स्थिति छोटे - बड़े हर क्षेत्र में है l
इस मानसिक गुलामी से तभी मुक्ति मिल सकती है जब बच्चों को शुरू से ही परिश्रमी और स्वाभिमानी बनाया जायेगा l
इस मानसिक गुलामी से तभी मुक्ति मिल सकती है जब बच्चों को शुरू से ही परिश्रमी और स्वाभिमानी बनाया जायेगा l
Friday 25 August 2017
धन और पद का लालच अशान्ति का कारण है
जनसँख्या के एक छोटे से भाग के पास ही धन , पद व प्रतिष्ठा होती है , यदि इस शक्ति का सदुपयोग किया जाता है तो पूरे समाज का , जनसँख्या के एक बड़े भाग का कल्याण होता है लेकिन जब इस शक्ति का दुरूपयोग होता है , इन लोगों में अपने इस ' सुख ' का लालच आ जाता है तो उसका परिणाम यह होता है कि धन व पद के ठेकेदार तो अपने मजबूत घरों में सुरक्षित रहते हैं , चैन की वंशी बजाते हैं और आम जनता , जनसँख्या का एक बड़ा भाग अराजकता और अव्यवस्था में पिसता और भयभीत रहता है l
जनता को अब जागने की और स्वाभिमान से जीने की जरुरत है l आज हर व्यक्ति स्वार्थी हो गया है , लोगों को सम्मोहित कर के , तरह - तरह से बेवकूफ बनाकर लोग अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं l जब लोग अपनी मेहनत, अपने ईमान पर भरोसा करके स्वाभिमान से जीना सीखेंगे तभी शान्ति होगी l
जनता को अब जागने की और स्वाभिमान से जीने की जरुरत है l आज हर व्यक्ति स्वार्थी हो गया है , लोगों को सम्मोहित कर के , तरह - तरह से बेवकूफ बनाकर लोग अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं l जब लोग अपनी मेहनत, अपने ईमान पर भरोसा करके स्वाभिमान से जीना सीखेंगे तभी शान्ति होगी l
Tuesday 22 August 2017
मानसिकता में परिवर्तन जरुरी है
मनुष्य के जैसे विचार होते हैं वह उसी के अनुरूप कार्य करता है l जब व्यक्ति अपने को श्रेष्ठ और ताकतवर समझता है , अहंकारी होता है तब वह अपनी हुकूमत अपने से कमजोर पर चलाता है l ऐसे कमजोर में चाहे -- नारी हो , अपने कार्यस्थल के कर्मचारी हों या अपने ही बच्चे हों , --- वे सबको अपने अनुशासन में चलाना चाहते हैं l ऐसी ही सोच से समाज में अत्याचार बढ़ते हैं l वक्त के साथ अत्याचार का रूप बदल जाता है l पहले समाज में अनेक कुप्रथाएं थीं -- सती-प्रथा थी , बाल -विवाह थे l समाज - सुधारकों के अनेक प्रयासों से यह कुप्रथाएं समाप्त हुईं तो अब दहेज़ -हत्या , कन्या -भ्रूण -हत्या , बलात्कार फिर हत्या ----- !
केवल नारी ही उत्पीड़ित नहीं है , ऐसे अहंकारी अपने बच्चों के लिए भी घातक हैं , अनेक जो उच्च पदों पर होते हैं ---डाक्टर , इंजीनियर, नेता --- वे अपने बच्चों की रूचि का ध्यान नहीं रखते , अपने धन और पद के बल पर , उचित - अनुचित हर प्रयास करके उन्हें अपनी इच्छा अनुसार चलाना चाहते हैं , ताकि समाज में उनकी ' झूठी प्रतिष्ठा ' बनी रहे , इसके लिए चाहे बच्चे कुर्बान हो जाएँ , उनकी ' प्रतिष्ठा ' बनी रहे l
समाज में सुधार के निरंतर प्रयास जरुरी हैं , लेकिन स्थायी सुधार तभी होगा जब लोगों के ह्रदय में संवेदना होगी , दूसरे के सुख - दुःख को अपना समझेंगे l शक्ति और अहंकार से नहीं , सद्गुणों से लोगों का ह्रदय जीतेंगे l
केवल नारी ही उत्पीड़ित नहीं है , ऐसे अहंकारी अपने बच्चों के लिए भी घातक हैं , अनेक जो उच्च पदों पर होते हैं ---डाक्टर , इंजीनियर, नेता --- वे अपने बच्चों की रूचि का ध्यान नहीं रखते , अपने धन और पद के बल पर , उचित - अनुचित हर प्रयास करके उन्हें अपनी इच्छा अनुसार चलाना चाहते हैं , ताकि समाज में उनकी ' झूठी प्रतिष्ठा ' बनी रहे , इसके लिए चाहे बच्चे कुर्बान हो जाएँ , उनकी ' प्रतिष्ठा ' बनी रहे l
समाज में सुधार के निरंतर प्रयास जरुरी हैं , लेकिन स्थायी सुधार तभी होगा जब लोगों के ह्रदय में संवेदना होगी , दूसरे के सुख - दुःख को अपना समझेंगे l शक्ति और अहंकार से नहीं , सद्गुणों से लोगों का ह्रदय जीतेंगे l
Sunday 20 August 2017
अशांति का मूल कारण ------ कर्तव्य की चोरी
आज की सबसे बड़ी जरुरत है ---- नैतिक शिक्षा l लोगों को अपने संस्कृतिक मूल्यों का ज्ञान हो , ह्रदय में संवेदना हो , पराये दुःख को अपना समझें , किसी को हानि न पहुंचाए ---- जब तक यह सब भावनाएं व्यक्ति में नहीं होंगी , वह ईमानदारी से अपना कर्तव्यपालन नहीं करता l लोगों को जोर - जबरदस्ती से सच्चाई के रास्ते पर नहीं चलाया जा सकता l जनता में अनुकरण करने की प्रवृति होती है , जैसा आचरण वे धन , पद और सामर्थ्य में अपने से अधिक ऊंचाई वाले , बड़े लोगों का देखती है वैसा ही अनुकरण जनता करती है l पारिवारिक , सामाजिक और राजनैतिक हर क्षेत्र में यह बात लागू होती है l समाज में बहुत बड़े परिवर्तन की जरुरत है l विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न पदों पर ऐसे व्यक्ति हों जो अपने आचरण से शिक्षा दें l
Friday 18 August 2017
अस्तित्व के लिए संघर्ष
समाज में तरह - तरह भेद होते हैं ---- ऊँच-नीच , अमीर- गरीब धर्म के आधार पर वर्ग भेद l इन सब से बढ़कर एक और वर्ग भेद संसार में बहुत समय से है --- यह योग्यता के आधार पर है ---- योग्य और अयोग्य l जो वास्तव में योग्य है , ईमानदारी और समर्पण भाव से कार्य करते हैं , वे अपने साथ औरों को भी आगे बढ़ाते हैं , इससे पूरा समाज और राष्ट्र तरक्की करता है l
लेकिन जब किसी समाज में दुर्बुद्धि का प्रकोप होता है तब अयोग्य व्यक्ति बड़ी मजबूती से संगठित हो जाते हैं l अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिए वे ऐसा ताना - बाना बुनते हैं कि किसी की योग्यता से समाज परिचित ही न हो पाए l क्योंकि यदि योग्य व्यक्ति सामने आ गया तो उनकी अयोग्यता जग - जाहिर हो जाएगी l संगठित होना ऐसे लोगों की मज़बूरी है l मनुष्यों में यह कछुआ प्रवृति होती है , कोई आगे बड़े तो उसकी टांग खींच लेते हैं l ऐसे लोगों की वजह से ही समाज में अशांति , अपराध , भ्रष्टाचार बढ़ता है l
ऐसी स्थिति से निपटने के लिए जरुरी है कि सच्चाई और ईमानदारी से कार्य करने वाले अपने कर्तव्य - पथ पर डटे रहें , संगठित हों , पलायन न करें l हर रात्रि के बाद सुबह अवश्य होती है l
लेकिन जब किसी समाज में दुर्बुद्धि का प्रकोप होता है तब अयोग्य व्यक्ति बड़ी मजबूती से संगठित हो जाते हैं l अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिए वे ऐसा ताना - बाना बुनते हैं कि किसी की योग्यता से समाज परिचित ही न हो पाए l क्योंकि यदि योग्य व्यक्ति सामने आ गया तो उनकी अयोग्यता जग - जाहिर हो जाएगी l संगठित होना ऐसे लोगों की मज़बूरी है l मनुष्यों में यह कछुआ प्रवृति होती है , कोई आगे बड़े तो उसकी टांग खींच लेते हैं l ऐसे लोगों की वजह से ही समाज में अशांति , अपराध , भ्रष्टाचार बढ़ता है l
ऐसी स्थिति से निपटने के लिए जरुरी है कि सच्चाई और ईमानदारी से कार्य करने वाले अपने कर्तव्य - पथ पर डटे रहें , संगठित हों , पलायन न करें l हर रात्रि के बाद सुबह अवश्य होती है l
Tuesday 15 August 2017
जागरूकता जरुरी है
लोगों को अपना गुलाम बनाना , उनका शोषण करना , अन्याय , अत्याचार करना , नारी जाति को उत्पीड़ित करना ----- यह हर उस व्यक्ति की प्रवृति है जिसके पास थोड़ी भी ताकत है l यदि दंड का भय न हो तो समाज में कायरता बढ़ जाती है l समाज में सारे उत्पीड़न का दायित्व कायर लोगों पर है , कायरता इस समाज का सबसे बड़ा कलंक है l इसी वजह से हम सदियों तक गुलाम रहे l राजनैतिक रूप से चाहे हम आजाद हो गए हों , पर शोषण , अत्याचार , अन्याय समाप्त नहीं हुआ l अत्याचारी के चेहरे बदल गए , नये कलाकार आ गये l
सही मायने में हम तभी आजाद होंगे जब लोगों की दुष्प्रवृत्तियों पर अंकुश होगा l दुष्प्रवृत्तियों का अंधकार बहुत सघन है , जनता अपना रोल -माँडल किसे चुने ?
सही मायने में हम तभी आजाद होंगे जब लोगों की दुष्प्रवृत्तियों पर अंकुश होगा l दुष्प्रवृत्तियों का अंधकार बहुत सघन है , जनता अपना रोल -माँडल किसे चुने ?
Friday 11 August 2017
ऐसी शिक्षण संस्थाएं खुलें जो लोगों को जीना सिखाएं
आज की सबसे बड़ी समस्या है कि लोगों को जीना नहीं आता l गरीब के जीवन में विभिन्न परेशानी आती हैं तो अपनी गरीबी के साथ वह उन्हें भी झेल लेता है और अपने सीमित साधनों में तीज - त्योहार आदि अवसर पर अपने परिवार और अपने समाज के साथ खुशियाँ भी मना लेता है l कष्ट कठिनाइयों में रहने से उसकी संघर्ष क्षमता विकसित हो जाती है l
लेकिन जो लोग सुख - सुविधाओं में रहते हैं , आरामतलबी का जीवन जीते हैं , उनकी श्रम करने की आदत नहीं होती l थोड़ी सी परेशानी भी उन्हें विचलित कर देती है l
शिक्षा ऐसी हो जो व्यक्ति को श्रम करना , कर्तव्य पालन करना , ईमानदारी और सच्चाई से रहना सिखाये l लोग थोडा सा धन - वैभव और किताबी ज्ञान होने से अहंकारी हो जाते है , उनके पैर जमीन पर नहीं पड़ते l ऐसे लोगों का अहंकार सम्पूर्ण समाज के लिए घातक हो जाता है l
नम्रता , करुणा , संवेदना , परोपकार जैसी भावनाएं जब जीवन की शुरुआत से ही बच्चों को सिखाई जाएँगी तभी एक स्वस्थ , सुन्दर समाज होगा l इन भावनाओं के अभाव में व्यक्ति निर्दयी हो जाता है l
लेकिन जो लोग सुख - सुविधाओं में रहते हैं , आरामतलबी का जीवन जीते हैं , उनकी श्रम करने की आदत नहीं होती l थोड़ी सी परेशानी भी उन्हें विचलित कर देती है l
शिक्षा ऐसी हो जो व्यक्ति को श्रम करना , कर्तव्य पालन करना , ईमानदारी और सच्चाई से रहना सिखाये l लोग थोडा सा धन - वैभव और किताबी ज्ञान होने से अहंकारी हो जाते है , उनके पैर जमीन पर नहीं पड़ते l ऐसे लोगों का अहंकार सम्पूर्ण समाज के लिए घातक हो जाता है l
नम्रता , करुणा , संवेदना , परोपकार जैसी भावनाएं जब जीवन की शुरुआत से ही बच्चों को सिखाई जाएँगी तभी एक स्वस्थ , सुन्दर समाज होगा l इन भावनाओं के अभाव में व्यक्ति निर्दयी हो जाता है l
Tuesday 8 August 2017
आचरण से शिक्षा दें -----
प्रवचनों का , उपदेशों का लोगों पर कोई विशेष प्रभाव तब तक नहीं पड़ता जब तक उपदेश देने वाला स्वयं उन बातों को अपने आचरण में नहीं उतारता l जब कोई व्यक्ति स्वयं श्रेष्ठ आचरण करता है और फिर वैसा ही श्रेष्ठ आचरण करने का लोगों को उपदेश देता है तो उसकी वाणी में प्राण आ जाते है और उसकी कही हुई बात श्रोताओं के ह्रदय में उतर जाती है और वे उसकी बताई राह पर चलने लगते हैं l ऐसे लोग आज बहुत कम हैं l धन की चकाचौंध ने व्यक्ति को दोरंगा बना दिया l परदे के सामने कुछ है और परदे के पीछे कुछ और है l चाहे पारिवारिक जीवन हो , सामाजिक या राजनीतिक, यह खोखलापन सब जगह है l बूढ़े होते लोग भी अपनी कामना , वासना , लोभ , लालच का त्याग नहीं कर पाते , तो वे समाज को क्या शिक्षा देंगे ? कौन सा आदर्श प्रस्तुत करेंगे ? प्रकृति ने ऐसी व्यवस्था की है कि मृत्यु होने पर कोई अपने साथ कुछ नहीं ले जा सकता , अन्यथा आज का मनुष्य सारा धन - वैभव अपने साथ बाँध कर ले जाता l
Wednesday 2 August 2017
अति स्वार्थ के कारण व्यक्ति नीचे गिरता चला जाता है
मनुष्य पर स्वार्थ हावी हो जाता है , कहते हैं मनुष्य स्वार्थ में अन्धा हो जाता है l ऐसा व्यक्ति किसी भी स्तर तक नीचे गिर सकता है l जिन्दगी में जब ऐसे व्यक्तियों से सामना हो तब हमें अपना आत्मविश्वास बनाये रखना चाहिए l लोग क्या कहते हैं , समाज क्या कहता है ? यह सब सोचकर अपने मन को नहीं गिरने देना हैअ सही है l यदि हमारे जीवन की दिशा सही है तो रास्ते की सभी बाधाएं हट जाएँगी , ' जीत हमेशा सत्य की होती है l '
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