मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है , पुरुष और नारी ही इस समाज में हैं और आधुनिक युग में जी रहे हैं लेकिन चेतना विकसित नहीं हुई | स्वतंत्रता , स्वच्छंदता में बदल गई और किसी प्रकार का भय , रोक - टोक न होने से मनुष्य के भीतर छिपा हुआ पशु जाग जाता है , इससे न केवल सामाजिक जीवन अपितु पारिवारिक जीवन भी अशांत और कलहपूर्ण हो जाता है |
हम चाहे कितने भी आधुनिक हो जाएँ लेकिन जो संस्कृति हमारे रोम - रोम में बसी है , हम उससे अलग नहीं हो सकते और अपने पारिवारिक जीवन में मर्यादा और पवित्रता देखना चाहते हैं |
आज के स्वच्छंद वातावरण में जब अश्लीलता , नशा अपनी चरम सीमा पर है इस संस्कृति की रक्षा कैसे संभव है ? हमें स्वयं जागना होगा क्योकि जब समाज का चारित्रिक पतन होता है तो उसके परिणाम बड़े दूरगामी होते हैं --- रिश्तों की अहमियत ख़त्म हो जाती है , परिवार बिखर जाते हैं , महान आत्माएं भी धरती पर आने के लिए तरसती हैं ।
हम चाहे कितने भी आधुनिक हो जाएँ लेकिन जो संस्कृति हमारे रोम - रोम में बसी है , हम उससे अलग नहीं हो सकते और अपने पारिवारिक जीवन में मर्यादा और पवित्रता देखना चाहते हैं |
आज के स्वच्छंद वातावरण में जब अश्लीलता , नशा अपनी चरम सीमा पर है इस संस्कृति की रक्षा कैसे संभव है ? हमें स्वयं जागना होगा क्योकि जब समाज का चारित्रिक पतन होता है तो उसके परिणाम बड़े दूरगामी होते हैं --- रिश्तों की अहमियत ख़त्म हो जाती है , परिवार बिखर जाते हैं , महान आत्माएं भी धरती पर आने के लिए तरसती हैं ।
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