संसार में अनेक लोग पुण्य के कार्य करते हैं , सेवा - परोपकार करते हैं लेकिन यदि वे उस कार्य को दिखावे के लिए या बोझ समझकर करेंगे तो उसका उतना पुण्य - प्रतिफल नहीं मिलेगा । अर्थशास्त्र का एक सिद्धान्त है कि यदि अर्थव्यवस्था में मंदी है उस समय यदि सरकार सार्वजनिक निर्माण कार्यों पर थोड़ा भी विनियोग करेगी तो रोजगार में गुणक गुना वृद्धि होगी ।
यही सिद्धान्त जीवन पर भी लागू होता है ---- यदि जीवन में रिक्तता है , निराशा है , डिप्रेशन है तो इसे दूर करने के लिए अपना थोड़ा सा धन , थोड़ा समय बड़ी खुशी के साथ दूसरों को , किसी जरूरतमंद को खुश करने के लिए उसके कष्टों पर मलहम लगाने के लिए खर्च कीजिये , उसका परिणाम होगा आपके जीवन में खुशियों में , सुख में गुणक गुना वृद्धि होगी ।
त्योहारों पर धन संपन्न लोग , कुछ कम्पनियां अपने मजदूरों को , कर्मचारियों को बोनस देते हैं , सामान्य परिवारों के लोग भी अपने घरों में काम करने वाले को उपहार , मजदूरी के अतिरिक्त रूपये आदि देते हैं । इस कार्य को यदि बोझ समझ कर करेंगे , उपेक्षा से देंगे तो जेब का पैसा भी खर्च हुआ और पुण्य भी नहीं मिला ।
यदि किसी को कुछ दो तो यह भावना रखो कि इस धरती पर जीने का , खुशियाँ मनाने का हक सबको है । ईश्वर तो कीट - पतंगे सभी का पेट भर रहें हैं , हमने तो केवल अपनी खुशियों को बढ़ाने के लिए छोटा सा परोपकार किया ।
यही सिद्धान्त जीवन पर भी लागू होता है ---- यदि जीवन में रिक्तता है , निराशा है , डिप्रेशन है तो इसे दूर करने के लिए अपना थोड़ा सा धन , थोड़ा समय बड़ी खुशी के साथ दूसरों को , किसी जरूरतमंद को खुश करने के लिए उसके कष्टों पर मलहम लगाने के लिए खर्च कीजिये , उसका परिणाम होगा आपके जीवन में खुशियों में , सुख में गुणक गुना वृद्धि होगी ।
त्योहारों पर धन संपन्न लोग , कुछ कम्पनियां अपने मजदूरों को , कर्मचारियों को बोनस देते हैं , सामान्य परिवारों के लोग भी अपने घरों में काम करने वाले को उपहार , मजदूरी के अतिरिक्त रूपये आदि देते हैं । इस कार्य को यदि बोझ समझ कर करेंगे , उपेक्षा से देंगे तो जेब का पैसा भी खर्च हुआ और पुण्य भी नहीं मिला ।
यदि किसी को कुछ दो तो यह भावना रखो कि इस धरती पर जीने का , खुशियाँ मनाने का हक सबको है । ईश्वर तो कीट - पतंगे सभी का पेट भर रहें हैं , हमने तो केवल अपनी खुशियों को बढ़ाने के लिए छोटा सा परोपकार किया ।
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