अधिकांश लोगों का यह कहना होता है कि हमने इतनी ईश्वर की पूजा की , भजन - पूजन , मूर्ति स्थापना सब कुछ किया लेकिन फिर भी जीवन में कष्ट व दुःख आया , कोई फायदा नहीं हुआ ।
यह बात हमें अच्छे से समझ लेनी चाहिए कि पूजा - भक्ति कोई सौदा नहीं है कि हमने की और हमारे कष्ट दूर हो गये या भविष्य के लिए गारंटी हो गई कि अब दुःख नहीं आएगा ।
सुख और दुःख तो हमारे अपने ही कर्मों का प्रतिफल है जो हमने जाने - अनजाने में इस जन्म में किये या पिछले जन्म में ।
पूजा- भक्ति करना व्यक्ति की अपनी इच्छा है , संसार की भाग - दौड़ से मन हटाकर ईश्वर में मन लगाना अच्छा है , लेकिन यह सोचना कि ऐसा करने से वो हमारे प्रारब्ध को बदल देंगे , असंभव है एक बार कोई व्यक्ति पूजा - पाठ न भी करे , लेकिन वह सत्कर्म करता है , किसी को दुःख नहीं पहुँचाता है , नि:स्वार्थ भाव से सेवा , परोपकार के कार्य करता है तो दुआओं में इतनी शक्ति होती है कि कठोर प्रारब्ध बहुत हल्का हो जाता है , जैसे भयानक एक्सीडेंट होना हो तो उसकी बजाय थोड़ी सी खरोंच आ जाती है ।
प्रारब्ध को काटने की शक्ति तो गायत्री मन्त्र में है , इसकी सफलता के लिए जरुरी है कि निष्काम कर्म करें , अपना कर्तव्य पालन करें , पूजा के बहाने कर्तव्य से जी न चुराएँ । और अपने दोषों को दूर करने का प्रयत्न करते हुए सन्मार्ग पर चलें ।
यह बात हमें अच्छे से समझ लेनी चाहिए कि पूजा - भक्ति कोई सौदा नहीं है कि हमने की और हमारे कष्ट दूर हो गये या भविष्य के लिए गारंटी हो गई कि अब दुःख नहीं आएगा ।
सुख और दुःख तो हमारे अपने ही कर्मों का प्रतिफल है जो हमने जाने - अनजाने में इस जन्म में किये या पिछले जन्म में ।
पूजा- भक्ति करना व्यक्ति की अपनी इच्छा है , संसार की भाग - दौड़ से मन हटाकर ईश्वर में मन लगाना अच्छा है , लेकिन यह सोचना कि ऐसा करने से वो हमारे प्रारब्ध को बदल देंगे , असंभव है एक बार कोई व्यक्ति पूजा - पाठ न भी करे , लेकिन वह सत्कर्म करता है , किसी को दुःख नहीं पहुँचाता है , नि:स्वार्थ भाव से सेवा , परोपकार के कार्य करता है तो दुआओं में इतनी शक्ति होती है कि कठोर प्रारब्ध बहुत हल्का हो जाता है , जैसे भयानक एक्सीडेंट होना हो तो उसकी बजाय थोड़ी सी खरोंच आ जाती है ।
प्रारब्ध को काटने की शक्ति तो गायत्री मन्त्र में है , इसकी सफलता के लिए जरुरी है कि निष्काम कर्म करें , अपना कर्तव्य पालन करें , पूजा के बहाने कर्तव्य से जी न चुराएँ । और अपने दोषों को दूर करने का प्रयत्न करते हुए सन्मार्ग पर चलें ।
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