आज मनुष्य एक झूठे अहंकार में डूबा हुआ है वह अपनी छोटी - छोटी जरूरतों के लिए अन्य पर निर्भर है , इस बात को स्वीकार करना ही नहीं चाहता । मनुष्य का भोजन , पानी , चिकित्सा , मनोरंजन , सफाई - व्यवस्था आदि सभी कार्य समाज में परस्पर निर्भरता से ही संपन्न हो पाते हैं ।
कृषि व उद्दोग परस्पर निर्भर है , मनुष्य , प्रकृति , पशु - पक्षी सब परस्पर निर्भर हैं , एक के बिना दूसरे का अस्तित्व संभव नहीं है ।
बड़ी - बड़ी कम्पनियां इसलिए बड़ी है , संसार में उनका नाम है क्योंकि उसमे काम करने वाले कर्मचारी कुशल और समर्पित भाव से काम करने वाले है , इसी तरह इन कर्मचारियों का जीवन - स्तर उच्च है क्योंकि कम्पनी उन्हें अच्छा वेतन दे रही है । ये दोनों पक्ष परस्पर निर्भर हैं ।
संसार में रहने वाला प्राणी कोई महायोगी नहीं है जो यह कह दे कि मुझे अपने किसी कार्य के लिए या किसी सुख के लिए किसी की आवश्यकता नहीं है ।
आज मनुष्यों पर दुर्बुद्धि का प्रकोप है वह दूसरे को मिटा कर सुखी होना चाहता है , इसी लिए संसार में अशान्ति है । प्रत्येक मनुष्य जाने - अनजाने में आत्म हत्या की ओर बढ़ रहा है ।
' हम सब एक माला के मोती हैं ' ------ यह सत्य जिस दिन मनुष्य की समझ में आ जायेगा उस दिन से वह ' जियो व जीने दो ' के सिद्धान्त पर चलेगा , तभी संसार में शान्ति होगी ।
कृषि व उद्दोग परस्पर निर्भर है , मनुष्य , प्रकृति , पशु - पक्षी सब परस्पर निर्भर हैं , एक के बिना दूसरे का अस्तित्व संभव नहीं है ।
बड़ी - बड़ी कम्पनियां इसलिए बड़ी है , संसार में उनका नाम है क्योंकि उसमे काम करने वाले कर्मचारी कुशल और समर्पित भाव से काम करने वाले है , इसी तरह इन कर्मचारियों का जीवन - स्तर उच्च है क्योंकि कम्पनी उन्हें अच्छा वेतन दे रही है । ये दोनों पक्ष परस्पर निर्भर हैं ।
संसार में रहने वाला प्राणी कोई महायोगी नहीं है जो यह कह दे कि मुझे अपने किसी कार्य के लिए या किसी सुख के लिए किसी की आवश्यकता नहीं है ।
आज मनुष्यों पर दुर्बुद्धि का प्रकोप है वह दूसरे को मिटा कर सुखी होना चाहता है , इसी लिए संसार में अशान्ति है । प्रत्येक मनुष्य जाने - अनजाने में आत्म हत्या की ओर बढ़ रहा है ।
' हम सब एक माला के मोती हैं ' ------ यह सत्य जिस दिन मनुष्य की समझ में आ जायेगा उस दिन से वह ' जियो व जीने दो ' के सिद्धान्त पर चलेगा , तभी संसार में शान्ति होगी ।
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