अधिकांशत: यह देखा जाता है कि लोग थोड़े भी बीमार हुए या थक गये तो बिस्तर पकड़ लेते हैं इस तरह वे बीमारी को और न्योता देते हैं शारीरिक कष्ट के समय , बहुत ही मज़बूरी वश बिस्तर पर लेटना चाहिए , जहाँ तक संभव हो चलते - फिरते कुछ - न - कुछ काम करते रहना चाहिए l यदि कभी ऐसी नौबत आ जाये कि बिस्तर पर पड़े रहना जरुरी है तो उस समय भी श्रेष्ठ साहित्य का अध्ययन - मनन करना , मानसिक रूप से मन्त्र जप करना चाहिए l अपने कष्ट के समय को रो - खीज कर नहीं गंवाना चाहिए , प्रयास करके कोई हुनर सीखें , अतिरिक्त ज्ञान प्राप्त करें l ऐसे सकारात्मक कार्य करने से धीरे - धीरे स्वास्थ्य भी अच्छा ही जाता है और सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है l
Wednesday 31 August 2016
Monday 29 August 2016
जीवन में सुख - शान्ति के लिए विवेक जरुरी है
अधिकांश लोग अपना सारा जीवन इसी उधेड़बुन में गँवा देते हैं कि---- हमें सम्मान नहीं मिला , किसी ने हमारी बात को महत्व नहीं दिया , हमारी आलोचना की , हंसी उड़ाई , हमारा अपमान किया ---- । हमें इस सत्य को हमेशा याद रखना चाहिए कि प्रत्येक व्यक्ति अपने स्वभाव, अपने संस्कार के अनुरूप ही किसी से व्यवहार करता है , वह अपने व्यवहार से स्वयं को हमारे सामने प्रकट कर देता है जैसे --- बिच्छू है , वह डंक तो मारेगा ही ।
अब हमारे भीतर यह विवेक होना चाहिए कि ऐसे भिन्न - भिन्न प्रकृति के लोगो द्वारा किये जाने वाले व्यवहार की हम कैसे प्रतिक्रिया करें ।
अन्याय तो कभी सहना ही नहीं चाहिए , उसका प्रतिकार तो अवश्य करना चाहिए , लेकिन कैसे ?
इसी के लिए विवेक की जरुरत है कि ' सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे '
अत्याचारी , अनाचारी कमजोर पड़ जाये और हम पर कोई आंच न आये ।
यह समझ स्कूल , कॉलेज की शिक्षा से नहीं आती l यह तो जीवन जीने की कला है जो श्रेष्ठ साहित्य को पढने से , महापुरुषों के जीवन प्रसंग का अध्ययन - मनन करने से आती है । । इसके लिए जरुरी है कि हमारे अपने जीवन की दिशा सही हो , ईमानदारी , सच्चाई , कर्तव्य पालन आदि विभिन्न सद्गुणों को अपने भीतर एकत्र करें , सन्मार्ग पर चलें । l इन सबके साथ यदि श्रद्धा और विश्वास से गायत्री मन्त्र जपें तो आप चमत्कार अनुभव करेंगे कि कैसे विभिन्न समस्याओं से आप बच निकलते हैं , कैसे विध्न - बाधाएं कटती जाती हैं और सफलता का मार्ग प्रशस्त होता जाता है ।
हमारे पास साँसे गिनती की हैं , इसलिए तर्क में न उलझें । व्यर्थ की बातों में समय व ऊर्जा न गंवाकर अपनी सफलता के मार्ग पर आगे बढ़ें ।
अब हमारे भीतर यह विवेक होना चाहिए कि ऐसे भिन्न - भिन्न प्रकृति के लोगो द्वारा किये जाने वाले व्यवहार की हम कैसे प्रतिक्रिया करें ।
अन्याय तो कभी सहना ही नहीं चाहिए , उसका प्रतिकार तो अवश्य करना चाहिए , लेकिन कैसे ?
इसी के लिए विवेक की जरुरत है कि ' सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे '
अत्याचारी , अनाचारी कमजोर पड़ जाये और हम पर कोई आंच न आये ।
यह समझ स्कूल , कॉलेज की शिक्षा से नहीं आती l यह तो जीवन जीने की कला है जो श्रेष्ठ साहित्य को पढने से , महापुरुषों के जीवन प्रसंग का अध्ययन - मनन करने से आती है । । इसके लिए जरुरी है कि हमारे अपने जीवन की दिशा सही हो , ईमानदारी , सच्चाई , कर्तव्य पालन आदि विभिन्न सद्गुणों को अपने भीतर एकत्र करें , सन्मार्ग पर चलें । l इन सबके साथ यदि श्रद्धा और विश्वास से गायत्री मन्त्र जपें तो आप चमत्कार अनुभव करेंगे कि कैसे विभिन्न समस्याओं से आप बच निकलते हैं , कैसे विध्न - बाधाएं कटती जाती हैं और सफलता का मार्ग प्रशस्त होता जाता है ।
हमारे पास साँसे गिनती की हैं , इसलिए तर्क में न उलझें । व्यर्थ की बातों में समय व ऊर्जा न गंवाकर अपनी सफलता के मार्ग पर आगे बढ़ें ।
Sunday 28 August 2016
विचारों में परिवर्तन को एक चुनौती के रूप में स्वीकार करें
मनुष्य के संस्कार प्रबल होते हैं , इसलिए वह ..अपने स्वभाव को बदलना ही नहीं चाहता ।
जैसे व्यवसाय में मनुष्य जोखिम उठाता है , नई चुनौतियों को स्वीकार करता है उसी तरह जीवन में भी विचारों को बदलने की जोखिम उठानी चाहिए जैसे -- जिन्हें नशे की लत है , सिगरेट बहुत पीते हैं , तम्बाकू के शौकीन हैं --- वे कम से कम एक महीने के लिए इस आदत को छोड़ने का संकल्प लें , और फिर देखें कि इन आदतों को छोड़ने का उनके स्वास्थ्य पर , कार्य क्षेत्र पर , पारिवारिक जीवन पर और उनकी शक्ल - सूरत पर --- क्या प्रभाव पड़ता है l
अपने जीवन में एक महीने यह प्रयोग करें और फिर स्वयं निर्णय लें की इन आदतों को बढ़ाना अच्छा है या इन आदतों को हमेशा के लिए छोड़ देना चाहिए । ।
जैसे व्यवसाय में मनुष्य जोखिम उठाता है , नई चुनौतियों को स्वीकार करता है उसी तरह जीवन में भी विचारों को बदलने की जोखिम उठानी चाहिए जैसे -- जिन्हें नशे की लत है , सिगरेट बहुत पीते हैं , तम्बाकू के शौकीन हैं --- वे कम से कम एक महीने के लिए इस आदत को छोड़ने का संकल्प लें , और फिर देखें कि इन आदतों को छोड़ने का उनके स्वास्थ्य पर , कार्य क्षेत्र पर , पारिवारिक जीवन पर और उनकी शक्ल - सूरत पर --- क्या प्रभाव पड़ता है l
अपने जीवन में एक महीने यह प्रयोग करें और फिर स्वयं निर्णय लें की इन आदतों को बढ़ाना अच्छा है या इन आदतों को हमेशा के लिए छोड़ देना चाहिए । ।
Saturday 27 August 2016
अध्यात्म पथ पर चलने का अर्थ संसार से भागना नहीं है
सुख शान्ति पूर्वक जीवन जीने के लिए जीवन में अध्यात्म का प्रवेश आवश्यक है |
आध्यात्मिक होने का अर्थ संसार से भागना नहीं है । जो व्यक्ति आध्यात्मिक है वह अपने जीवन को अधिक कुशलता के साथ जीता है , जीवन के हर पल का सदुपयोग करता है ।
पूजा - पाठ , कर्मकांड करने से आध्यात्मिक होने का कोई संबंध नहीं है l कर्मकांड करने वाला व्यक्ति अपराधी , भ्रष्टाचारी , दुर्गुणी हो सकता है लेकिन एक सच्चा आध्यात्मिक सद्गुण संपन्न होता है । आध्यात्मिक होना एक सतत प्रक्रिया है , निरंतर अपने दोषों का अवलोकन कर उन्हें दूर करें और सद्गुणों को ग्रहण कर , सन्मार्ग पर चलें ।
आध्यात्मिक होने का अर्थ संसार से भागना नहीं है । जो व्यक्ति आध्यात्मिक है वह अपने जीवन को अधिक कुशलता के साथ जीता है , जीवन के हर पल का सदुपयोग करता है ।
पूजा - पाठ , कर्मकांड करने से आध्यात्मिक होने का कोई संबंध नहीं है l कर्मकांड करने वाला व्यक्ति अपराधी , भ्रष्टाचारी , दुर्गुणी हो सकता है लेकिन एक सच्चा आध्यात्मिक सद्गुण संपन्न होता है । आध्यात्मिक होना एक सतत प्रक्रिया है , निरंतर अपने दोषों का अवलोकन कर उन्हें दूर करें और सद्गुणों को ग्रहण कर , सन्मार्ग पर चलें ।
Friday 26 August 2016
अशान्ति का कारण है ----- कर्तव्य की चोरी
आज मनुष्य के जीवन का उद्देश्य केवल धन कमाना रह गया है । इसका ईमानदारी और नैतिकता से कोई संबंध नहीं है । संसार की अधिकांश समस्याओं की जड़ यही है की कर्तव्य पालन में ईमानदारी नहीं है , दिखने में ऐसा लगता है कि लोग काम कर रहे हैं किन्तु काम तो कागजों में निपट जाता है , वास्तविकता के धरातल पर कुछ दिखाई नहीं देता । कर्तव्य की चोरी से व्यक्ति प्रकृति का ऋणी हो जाता है जिसे वह बीमारी, दुःख , तकलीफ आदि विभिन्न समस्याओं के रूप में चुकता है ।
सुख - शान्ति से जीना मनुष्य के अपने हाथ में है l सच्चाई और ईमानदारी के रास्ते पर चलकर ही
शांतिपूर्ण जीवन जिया जा सकता है ।
सुख - शान्ति से जीना मनुष्य के अपने हाथ में है l सच्चाई और ईमानदारी के रास्ते पर चलकर ही
शांतिपूर्ण जीवन जिया जा सकता है ।
Wednesday 24 August 2016
कष्ट और दुःख के दिनों में हताश होकर न बैठें
सामान्यतया यह देखा जाता है कि लोगों के जीवन में कोई आकस्मिक दुर्घटना , विपत्ति , बीमारी आदि परेशानियाँ आ गईं तो वे सब मित्रों से , दूर - दूर के रिश्तेदारों से इसकी चर्चा करेंगे । ऐसा करने से वे परेशानियाँ घटती नहीं है बल्कि बार - बार उनकी चर्चा करने से वे ताजी बनी रहती हैं l जरुरी ये है कि ऐसे समय में सकारात्मक कार्यों में व्यस्त रहें , श्रेष्ठ साहित्य का स्वाध्याय करें सबसे बढ़कर निष्काम कर्म की गति व मात्रा बढ़ा दें ।
Thursday 18 August 2016
मन की शान्ति के लिए सकारात्मक सोच जरुरी है
अधिकांश व्यक्ति थोड़ी सी भी कठिनाई आने पर परेशान, निराश हो जाते हैं , जिसका असर उनके स्वास्थ्य पर और पारिवारिक जीवन पर पड़ता है । हम समस्याओं के प्रति अपनी सोच सकारात्मक रखें तो यह समस्या हल हो जायेगी जैसे ---- शरीर में कोई बीमारी है , तकलीफ है तो हम बीमारी का दुःख न मनाये , यह सोचें कि इस बीमारी के बहाने ईश्वर हमें अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना चाहते हैं कि------ हम अपनी दिनचर्या नियमित करें, श्रेष्ठ चिंतन करें , अपने आप से प्यार करें , गलत आदतों को छोड़ दें । ऐसी जागरूकता से शरीर स्वस्थ रहेगा ।
इसी तरह व्यवसाय में हानि हो , कोई बड़ा आर्थिक नुकसान हो जाये तो कभी निराश न हों । जो खोया वो न देखें , जो बचा है उसके लिए खुश हों l यह समझे कि प्रकृति हमें सिखाना चाहती है कि हम किफायत से चलें , मितव्ययी बने , बचत करें ताकि ऐसा संकट आने पर भी पारिवारिक बजट फेल न हो । जिंदगी की गाड़ी सरलता से चलती रहे ।
इसी तरह व्यवसाय में हानि हो , कोई बड़ा आर्थिक नुकसान हो जाये तो कभी निराश न हों । जो खोया वो न देखें , जो बचा है उसके लिए खुश हों l यह समझे कि प्रकृति हमें सिखाना चाहती है कि हम किफायत से चलें , मितव्ययी बने , बचत करें ताकि ऐसा संकट आने पर भी पारिवारिक बजट फेल न हो । जिंदगी की गाड़ी सरलता से चलती रहे ।
Wednesday 17 August 2016
दुःख , बीमारी , परेशानी में मन को कैसे शांत रखें ----
हम सब इनसान हैं और हम सबके जीवन में एक - न - एक समस्या बनी रहती है । जब समस्याओं से मुक्ति नहीं है तो उचित यही है कि हम इन समस्याओं के बीच भी मन को शांत रखना सीख लें इसके लिए सर्वप्रथम शर्त है ----- अज्ञात शक्ति पर , ईश्वर पर विश्वास । हम इस बात की गाँठ बाँध लें कि ईश्वर हमारा बुरा नहीं चाहते । ईश्वर बोलते नहीं हैं , वो परिस्थितियों के माध्यम से हमें सिखाना चाहते हैं , हमें मजबूत बनाना चाहते हैं । हमारे भीतर समझ पैदा करना चाहते हैं जिससे हम कष्टों में हताश न हों , और भी मजबूत बन जायें ।
ईश्वर विश्वास --- का अर्थ लोग पूजा - पाठ , प्रार्थना , कर्मकांड से लेते हैं । प्रत्येक मनुष्य अपने व्यक्तिगत जीवन में अपने तरीके से उपासना करता है लेकिन ईश्वर विश्वास का अर्थ है हम इस सत्य को स्वीकार करें कि ईश्वर हर पल हमारे साथ है , हम जिस मूर्ति की पूजा करते हैं वह सिर्फ मूर्ति नहीं है , ईश्वर हमें देख रहे हैं इसलिए हम सतर्क रहें , कोई गलत काम न करें , झूठ न बोलें, कामचोरी न करें , किसी को सताएं नहीं और सत्कर्म करें , खुशियाँ बांटने का प्रयास करें ।
ऐसा ही सच्चा विश्वास रखने से और धैर्य रखने से मन शांत रहता है ।
ईश्वर विश्वास --- का अर्थ लोग पूजा - पाठ , प्रार्थना , कर्मकांड से लेते हैं । प्रत्येक मनुष्य अपने व्यक्तिगत जीवन में अपने तरीके से उपासना करता है लेकिन ईश्वर विश्वास का अर्थ है हम इस सत्य को स्वीकार करें कि ईश्वर हर पल हमारे साथ है , हम जिस मूर्ति की पूजा करते हैं वह सिर्फ मूर्ति नहीं है , ईश्वर हमें देख रहे हैं इसलिए हम सतर्क रहें , कोई गलत काम न करें , झूठ न बोलें, कामचोरी न करें , किसी को सताएं नहीं और सत्कर्म करें , खुशियाँ बांटने का प्रयास करें ।
ऐसा ही सच्चा विश्वास रखने से और धैर्य रखने से मन शांत रहता है ।
Friday 12 August 2016
सुख - शान्ति से जीने का सरलतम मार्ग
सुख शान्ति से जीने के लिए मनुष्य धन - सम्पदा , वैभव - विलास के साधन जोड़ता है , यह सब भी बहुत जरुरी है लेकिन मन शांत रहे इसके लिए दो बातें अनिवार्य हैं ------ 1. अद्रश्य शक्ति पर विश्वास 2. निष्काम कर्म | एक व्यक्ति यदि इस दो बातो को जीवन में अपना ले तो जीवन सरल हो जायेगा | ईश्वर कहाँ है ? कैसा है , ----- इन सब तर्कों में न उलझे | ईश्वर विश्वास का अर्थ है जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में कर्तव्य पालन और सत्कर्म का कोई भी मौका हाथ से जाने न पाए | इतना भर करते रहने से जीवन की अपने आप सरल हो जाएगी |
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